कर्नाटक का नाटक:
कर्नाटक विधान सभा ने गुरुवार को यह कहा था कि उनके पास लंबित पड़े 14 अन्य विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर वे अगले कुछ दिनों में फैसला करेंगे।
संविधान के अनुच्छेद 179 (स) यह अधिकार देता है कि किसी भी विधानसभा स्पीकर को सदन में प्रस्तावना लाकर उसे बहुमत से पास करवा कर पद से हटाया जा सकता है। इसके लिए, किसी भी मौजूदा स्पीकर को हटाने के लिए 14 दिन दिन पहले प्रस्तावना को नाटिस देने की आवश्यकता होती है।
अरुणाचल प्रदेश में 14 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2016 में यह कहा था:
“किसी भी स्पीकर के लिए संवैधानिक तौर पर यह संभव नहीं है कि जब उनके खिलाफ अयोग्यता के प्रस्ताव का नोटिस दिया गया हो तो फिर वे किसी और को अयोग्य ठहराए।”
इस प्रकार जैसे ही यह प्रस्ताव लाया जाता है, उसके बाद स्पीकर किसी को अयोग्य नहीं ठहरा सकता है।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यह १४ दिनों को नोटिस भाजपा ने अब तक क्यों नहीं दिया जबकि यह तय दिख रहा था कि सभापति कतई निष्पक्ष नहीं थे।
यह भूल भाजपा को महंगी ना साबित हो।
अविश्वास प्रस्ताव ना ला कर भाजपा ने स्पीकर को १४ विधायकों को अयोग्य करने का खुला हाथ दे दिया और उन्होंने आज २८ जुलाई को १४ विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया।
यह वही स्पीकर है जिन्होंने त्यागपत्र इस लिए देखने से इंकार कर दिया था कि वे छुट्टी के दिन शनिवार और रविवार को कम नहीं देखेंगे।
जरूरत तो अब यह महसूस हो रही है कि क्या ऐसे पक्षपाती सभापति को हमेशा के लिए अयोग्य करार दिया जा सकता है?
एक विचार यह भी है कि भाजपा ने जान के इन बेईमान विधायकों को अयोग्य होने दिया। अब भाजपा आराम से सरकार चलाएगी और यह विधायक अपनी अयोग्यता को न्यायालय में चुनौती देंगे। जब तक फैसला आयेगा तब तक सरकार जम जाएगी।