सरकार और विपक्ष की तनातनी।

सरकार का काम नीतियां बनाना विधि विधान बनाना। पर विपक्ष का काम क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के बीच विश्वास की कमी जाहिर है। 16 जून को पारंपरिक सर्वदलीय बैठक के बाद पीएम द्वारा अपने पालतू प्रोजेक्ट, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विचार-उत्सव पर बुलाया पर कांग्रेस और अन्य सेक्युलर पार्टियों ने आने से इनकार कर दिया।

आशा है कि आपको भारत में सेक्युलर का क्या मतलब होता है, याद होगा। जी हां इसका मतलब होता है वह पार्टियां जो मुस्लिम वोट बैंक पर ही आश्रित है।

लोकसभा 2019 में मतदाताओं द्वारा बेरहमी से शिक्षा देने के बाद विपक्ष अभिघातजन्य तनाव विकार के एक राजनीतिक संस्करण से पीड़ित हुआ लगता है। इसे संसद के भीतर और बाहर एक सुसंगत बल के रूप में संगठित करना अभी बाकी है।

समस्या यह है कि सेक्युलर वोट बैंक को नाराज किये बिना एक संयुक्त रणनीति के साथ कैसे चले।

विपक्ष को पीएम का बड़ा दिल, राजनेता जैसा आश्वासन कि: इसकी संख्या की कमी इसे सुनने से नहीं रोकेगी – “आपके द्वारा बोला गया हर शब्द हमारे लिए मूल्यवान है” – का वांछित प्रभाव नहीं था।

प्रमुख विपक्षी खिलाड़ी – कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, टीएमसी और डीएमके ने बैठक को छोड़ यह चुना कि वे एकमत और जबरदस्ती बोलने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन ट्रेजरी और विपक्ष के बेंच के बीच खटास का एक कारण पीएम मोदी का बाद का अविश्वास है। उन्हें डर है कि सरकार व्यवस्थित रूप उनके पुराने कंकालों को खोद के निकालेगी करेगी।

यह बात अलग है कि अभी 2 सप्ताह पहले ही केंद्रीय अन्वेषक दल ने उच्चतम न्यायालय में कह दिया था कि मुलायम सिंह के परिवार के विरुद्ध आय से अधिक धन होने के मामले में कुछ भी नही है औऱ मामले को बंद करने की संतावना कर दी। पर लगता है कि इसका कोई अपेक्षित प्रभाव नही पड़ा।

लेकिन बड़ा सवाल: विपक्ष क्या करे?

एक समस्या यह है कि कांग्रेस पार्टी 52 सीटो के साथ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जरूर है पर उसे विपक्ष में बैठने का कोई अभ्यास नही है। सरकार का विरोध और हर बात पर विरोध औऱ जरूरत पड़े तो धरना व नारेबाजी, यही उसका प्रयास होगा।

एक अच्छा उपाय होगा कि कांग्रेस पिछले लोक सभा के पुराने वीडियो देखें। पर कौन देखे? राज माता देखे की शहजादा देखे। दोनो ज्यादा बोलना नही चाहते। दोने जानते है कि बोलना, वह भी बिना तैयारी के या पर्ची के संभव नही है।

कुछ महीनों में राज्यो में चुनाव होने है तब तो संसद का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए किया जा सकता है पर अभी क्या करे। पर वह तो पहले ही बता दिया था ना। इंच इंच बदला।

मतलब: टकराव, रुकावट, धरना, नारे, ओर कुछ भी जिससे काम रोका जा सके और नही तो जाया ही करो।

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