बेरुत में जबरदस्त धमाका।

बेरुत में मंगलवार शाम हुए विनाशकारी धमाके में अब तक 135 लोगों की जान जा चुकी है और 4000 से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हुए हैं। भूकंप विज्ञानियों का कहना है कि यह धमाका 3.3 रिक्टर स्केल के भूकंप के बराबर था। यह धमाका पोर्ट पर एक गोदाम में रखे 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट में हुआ। कहा जा रहा है कि यह असुरक्षित तरीक़े से रखा हुआ था, जो विस्फोट का कारण बना।
लेबनान ज़्यादातर खाद्य सामग्री आयात करता है और अनाज का बड़ा हिस्सा पोर्ट पर स्टोर करके रखा जाता है. लेकिन धमाके में ये स्टोर किए अनाज भी पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं।

लेबनान पर 92 अरब डॉलर का कर्ज है जो कि उसकी जीडीपी के 170 फीसदी के आसपास है। देश की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीती है और करीब 35 फीसदी लोग बेरोजगार हैं।
लेबनान के पास एक महीने से भी कम के सुरक्षित अनाज बचे हैं लेकिन आटा पर्याप्त है इसलिए संकट से बचा जा सकता है। लेकिन ऐसी बदहाली क्यो है? यह भी जानिए।
लेबनान में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मजहब के अनुसार बनाए जाते हैं।
1975-1990 के गृहयुद्ध के बाद लेबनान में एक नई राजनीतिक प्रणाली शुरू की गई थी। इसके तहत, यह तय किया गया कि देश का राष्ट्रपति एक ईसाई, प्रधान मंत्री एक सुन्नी मुस्लिम और संसद का अध्यक्ष एक शिया मुस्लिम होगा।
संसद में मजहबी आरक्षण:
संसद की सीटों को मुस्लिम और ईसाई दो समान भागों में विभाजित किया गया था, नौकरशाही में भी यही नियम लागू किया गया था। लेबनान में 27 फीसदी शिया मुस्लिम, 27 फीसदी सुन्नी मुस्लिम, करीब 40 फीसदी ईसाई और छह फीसदी ड्रूज आबादी है। यह माना जाता है कि सभी समुदायों के लोगों को संतुष्ट रखने के लिए एक नई राजनीतिक प्रणाली शुरू की गई थी।
अब यहाँ के लोग वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की माँग कर रहे हैं।