इसके बाद, यह अच्छी तरह से समझ में नहीं आया कि वायरस कितना संक्रामक हो सकता है, जो बहुत बीमार नहीं लगता है। लेकिन अब शोधकर्ताओं को पता है कि हल्के लक्षणों के साथ जिन लोगों को घर पर रहने के लिए कहा जाता है, वे आमतौर पर वायरस को परिवार के सदस्यों को देने का जोखिम उठाते हैं, साथ ही साथ अपने घरों के बाहर अन्य लोगों के रूप में कुछ स्वतंत्र रूप से चले जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन में स्वास्थ्य आपात स्थिति के प्रमुख माइक रेयान ने सोमवार को कहा, “लॉकडाउन के कारण, कई ट्रांसमिशन जो वास्तव में कई देशों में हो रहे हैं, अब परिवार के स्तर पर हो रहे हैं। अब हमें परिवारों में जाकर देखना होगा और उन लोगों को ढूंढना होगा जो बीमार हो सकते हैं और उन्हें हटाकर सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से अलग कर सकते हैं।”
इतालवी दैनिक कोरिएरे डेला सेरा ने सोमवार को बताया कि लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों पर शनिवार की कार्रवाई में कुछ 50 पुष्टि किए गए मामले शामिल थे, जो घर पर रहने के बजाय सड़कों पर घूम रहे थे।
वुहान ने फरवरी के शुरू में कार्यालयों, स्टेडियमों और व्यायामशालाओं से परिवर्तित किए गए अस्थायी अस्पतालों में सभी हल्के मामलों को दाखिल करना शुरू कर दिया, एक कदम जिसने वायरस के प्रसार को नाटकीय रूप से धीमा करने में मदद की। जिस शहर में पिछले दिसंबर में वायरस पहली बार उभरा था, वह आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सफलतापूर्वक रुक गया है, सिवाय कुछ नए संक्रमण के जबकि कि अन्य देशों में महामारी में तेजी आती है।
लेकिन कहते हैं इंसान इतिहास से कुछ नहीं सीखता। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका और इंग्लैंड भी कुछ ऐसी गलतियों को दोहरा रहे हैं। मरीजों की बढ़ती संख्या के कारण उनको अलग रखने की जगह की उचित व्यवस्था ना होने के कारण वह रोगियों को घर पर ही अकेले रहने की सलाह दे रहे हैं जब तक की रोग गंभीर लक्षण ना दिखाएं। यह उचित कदम नहीं है और इसके कारण महामारी का प्रकोप भीषण होता दिख रहा है। अब प्रतिदिन विश्व में 50,000 नए रोगी उभरते हुए दिख रहे हैं।
इसके विपरीत भारत ने शुरुआत से ही लोगों को लक्षण देखते ही अलग रखने का प्रयास किया है। यहां तक कि आगरा के एक परिवार के सात लोगों को बीमारी के कारण दिल्ली लाकर अलग-अलग कमरों से में रखा गया। श्री कपूर नामक सज्जन ने प्रधानमंत्री की मन की बात कार्यक्रम में इस बात का खुलासा किया। एकांतवास की आवश्यकता को देखते हुए भारत बहुत ही बड़े पैमाने पर एकांतवास हेतु बिस्तरों का प्रबंध कर रहा है। यहां तक की रेल के डिब्बों को भी रोगियों के रखने लायक साधारण अस्पताल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।

इस दिशा में विश्व को एक नए आयाम से सोचने की आवश्यकता है और इसको बहुत जल्दी करना होगा।