दोस्त दोस्त ना रहा:
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेताओं में से एक हैं और 2018 की कांग्रेस पार्टी की मध्य प्रदेश की जीत के प्रमुख शिल्पकार है। 2018 के चुनाव के दौरान उन्होंने डेढ़ सौ से ज्यादा रैलियां करके कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवित कर सत्ता के दरवाजे पर पहुंचाया। परंतु सत्ता प्राप्त होते ही कांग्रेसमें उन्हें दरकिनार करते हुए अपने पुराने वफादार कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। परसों ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से अपना त्यागपत्र दे दिया और 24 घंटे का वक्त देने के बाद कल 2:00 बजे उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। हैरानी की बात यह है कि इस पूरे वक्त में कांग्रेस पार्टी की तरफ से किसी ने भी उनको मनाने या ऐसा करने से रोकने का कोई प्रयास नहीं किया।
राजनीतिक रूप से सिंधिया का भाजपा में जाना एक बड़ी खबर हो सकता है परंतु उससे भी बड़ी खबर यह है कि वह राहुल गांधी के बचपन के घनिष्ठ मित्र रहे हैं। सिंधिया के जाने के बाद राहुल गांधी ने स्वयं ट्वीट करके कहा कि वह उन गिने-चुने व्यक्तियों में थे जो किसी भी वक्त राहुल गांधी से मिल सकते थे। यह ट्वीट दिखलाता है की उम्र में कितना घनिष्ठ संबंध था। राहुल गांधी ने अभी यह ट्वीट किया:
इस ट्वीट का क्या मतलब हो सकता है? सिंधिया को सब्र करना चाहिए क्योंकि कमल नाथ का वक्त चल रहा है? भगवान जाने।
तो ऐसा क्या हुआ कि दोस्त दोस्त ना रहा प्यार प्यार ना रहा। यही सिंधिया है जो राहुल गांधी के दाहिने हाथ रहते थे और जब उन्हें किसी भी बात का जवाब समझ नहीं आता था तो वह उनके कान में धीरे से खुस पुसा के जवाब दे देते थे। हो सकता है आज राहुल बाबा कह रहे हों:
क्या कहूं मैं अपने दोस्तों के बारे में
मेरी किस्मत के फूल है यह
जब भी देते हैं यह जख्म देते हैं।
कितने बाअसूल है यह
सांप की तस्वीर तो ऐसो को ही जेब देती है।
कांप उठती है दुश्मनी जब दोस्ती फरेब देती है।।
देखना होगा कि अब जब दोस्त दोस्त नहीं रहे तो एक दूसरे से कैसे व्यवहार करते है।