नागरिकता कानून और नागरिकता रजिस्टर का चर्चा गर्म है लेकिन यह है क्या?
आपने कोई ऐसा देश सुना है जहां पर ना तो देश की सीमा यानी बाउंड्री का पता हो ना यह पता हो कि देश के नागरिक हैं कौन?
अगर आपने नहीं सुना तो आपको बताते हैं कि ऐसे विचित्र देश का नाम भारत है।
भारत के ५ बड़े पड़ोसी हैं जिनके नाम है पाकिस्तान चीन बांग्लादेश और म्यांमार और नेपाल। वैसे तो और भी पड़ोसी हैं लेकिन यह वह ५ पड़ोसी है जिनसे भारत की जमीनी सीमा जुड़ी हुई है।
भारत का एक और पड़ोसी होता था जिसका नाम था तिब्बत उस पर चीन ने कब्जा कर लिया और जबरन हमारा पड़ोसी बन गया। ऐसा 1957 में हुआ और भारत में इस पर कोई विरोध नहीं किया। चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता है और गाहे-बगाहे इस सवाल को उछालता रहता है। इसके अतिरिक्त चीन ने लद्दाख में अक्साई चीन नामक जमीन पर कब्जा कर रखा है। पाकिस्तान ने कश्मीर के बड़े हिस्से और गिरगिट बाल्टिस्तान पर कब्जा कर रखा है जिसमें कुछ हिस्सा चीन को दे दिया है। कहने का मतलब है कि भारत पाकिस्तान और चीन की सीमाएं क्या है इसका पता नहीं।
धारा 370 हटाने से पहले यह स्पष्ट ही नहीं था कि कश्मीर भारत का हिस्सा है तो स्थाई रूप से है कि अस्थाई रूप से है। मतलब सीमा का ही पता नहीं था।
बांग्लादेश के साथ भी गंभीर बॉर्डर डिस्प्यूट था लेकिन उसे कुछ साल पहले सलटा लिया गया और अब भारत बांग्लादेश में समझौता हो गया की सीमाएं किसकी कहां तक है।
अंग्रेज भारत को 1947 में छोड़ कर गए थे उसके बाद भारत को पता होना चाहिए कि उसके नागरिक कौन है। लेकिन 1955 तक नागरिकता का कानून ही नहीं था। 1957 तक भारत-पाकिस्तान आने जाने के लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं थी।
भारत और नेपाल में आज भी पासपोर्ट की जरूरत नहीं है। भारत नेपाल का एक छोटे से गांव के ऊपर आज भी सीमा विवाद है।
कहने का तात्पर्य यह है कि एक देश जो 70 साल पहले बना यानी कि जिसकी सीमाएं 70 साल पहले तय हुई उस पर तो जो विवाद है वह तो है ही उसको यह भी नहीं पता कि उसकी नागरिक कौन है और कितने हैं।
जनसंख्या की गणना तो हुई और आखरी बार 2011 में भी हुई थी परंतु जनसंख्या यहां के रहने वाले लोगों की है। संविधान और नागरिकता के कानून के हिसाब से कौन लोग भारत के नागरिक हैं उनका जो रजिस्टर 1955 में बनाने का वायदा हुआ था वह आज तक पूरा नहीं हुआ।
एनआरसी या नागरिकता रजिस्टर का मकसद एक सूची को तैयार करना है जिसमें भारत के सभी नागरिकों के नाम शामिल हो। ऐसी सूची प्रत्येक देश के पास होती है। ऐसा कहीं पर भी नहीं होता कि आप आधार कार्ड और वोटर आईडी बनवा लो और सभी सुविधाएं नागरिकों की ले लो।
नागरिकों को भारत सस्ता अनाज देता है सस्ती खाद देता है। पेंशन इंश्योरेंस ऐसी कई सुविधाएं हैं जो सिर्फ नागरिकों के लिए है। लेकिन पड़ोस के देशों से आए हुए घुसपैठिए इन सुविधाओं का लाभ लेकर भारत सरकार का खर्चा बढ़ा रहे हैं।
खर्चे के अलावा घुसपैठियों के आने से एक और हानि होती है कि वह लोगों की नौकरियां ले लेते हैं जिससे बेरोजगारी बढ़ती है। वह विपक्ष जो बेरोजगारी के लिए लगातार त्योरियां चढ़ाय खड़ा है, आज घुसपैठियों का साथ दे रहा है।
अब नागरिकता में संशोधन के अधिनियम को समझते हैं। भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए ऐसे बहुत से शरणार्थी हैं जो वहां उन पर ढाए गए जुल्मों के कारण मजबूर होकर भारत में शरण लिए हुए हैं। यह सभी हिंदू बौद्ध सिख इसाई जैन इत्यादि धर्मों से संबंधित है। इनमें बहुत से शरणार्थी कैंपों में रह रहे हैं। दिल्ली में मजनू का टीला एक जगह है जहां तिब्बत से आए हुए और पाकिस्तान से आए हुए शरणार्थी ही रहते हैं।
नागरिकता कानून इन गैर मुस्लिम शरणार्थियों को जो मजबूरी में जान बचाने के लिए भारत में है एक बार की छूट देता है कि उन्हें अन्य नियमों के पालन की जगह अगर वह 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आ गए हैं तो उन्हें 2020 के बाद नागरिकता दे दी जाएगी।
भारतीय नागरिकता कानून में किसी भी देश से आए हुए व्यक्ति को नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार है अगर वह भारत में 11 साल गुजार ले। 11 साल गुजरने के बाद उसके चाल चलन को देखकर नागरिकता दी जा सकती है। इस प्रकार पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए मुस्लिम भी भारत आकर भारत की नागरिकता को प्राप्त कर सकते हैं बशर्ते की वह भारत में अच्छे चाल चलन के साथ 11 साल रहे और उसके बाद नागरिकता के लिए अर्जी दे दे।
उपरोक्त गैर मुस्लिमों को जो पाकिस्तान और बांग्लादेश अफगानिस्तान से आए हैं उनके लिए यह शर्त 11 साल से घटाकर 6 साल कर दी है साथ ही में उन्हें तब भी नागरिकता दी जाएगी अगर उनके पास कोई कागज नहीं है। यह उनकी विशेष पीड़ित परिस्थिति को देखते हुए किया गया है।
नागरिकता रजिस्टर में सभी लोगों को जो भारत में रह रहे हैं और भारत की नागरिकता पर अपना हक रखते हैं उन्हें बताना होगा और अपने कुछ कागज देने होंगे। जो लोग 1971 के पहले भारत में जन्म लिए हैं उनका तो जन्म प्रमाण पत्र ही काफी है या स्कूल वगैरह का कागज काफी है। जो 1971 के बाद जन्मे है उन्हें अपने जन्म प्रमाण पत्र के अतिरिक्त अपने पिताजी का भी जन्म प्रमाण पत्र या कुछ अन्य कागज देने होंगे। कागज देने के मामले में बहुत ढील है और पुराने बैंक खातों जीवन रक्षा इंश्योरेंस आदि के कागज भी मान्य है। और अगर आपके पास पासपोर्ट है तो उससे अच्छा तो कोई कागज ही नहीं है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार नागरिकता रजिस्टर बनाने के लिए प्रतिबध है। वह यहां रह रहे लाखों लोगों को इनकी संख्या करोड़ों में भी हो सकती है जानती है कि बाहर तो नहीं फेंका जा सकता है लेकिन वह उनसे मतदान का अधिकार और जो सब्सिडी वह ले रहे हैं जिसका हक भारत के नागरिकों पर है उसको जरूर वापस लेने के लिए प्रतिबध दिख रही है।
विपक्षी पार्टी भारत के नागरिकों के हित को ना समझ कर इस कदम का विरोध करके आत्महत्या जैसा कदम उठा रही है क्योंकि भारत के सभी नागरिक यह जानते हैं कि घुसपैठिए दीमक की तरह उनके हक को खा रहे हैं। और क्षमा करिएगा यह शब्द दीमक मेरा नहीं है वरन् कांग्रेस पार्टी के सांसद श्री शशि थरूर का है।
विपक्षी पार्टियों के विरोध से भारतीय जनता पार्टी के लोगों की बांछें खिल गई है क्योंकि यह मुद्दा अब उन्हें बंगाल भी जीताएगा और जो वह एक राज्य के बाद दूसरे राज्य को हार रहे थे उस मंदी के दौर को भी दूर कर देगा। भाजपा की निगाह 2024 के चुनाव की तरफ उठ गई होंगी।
एक बात और स्पष्ट कर दूं जिस प्रकार दिल्ली पुलिस ने जामिया मिलिया की वीडियो की रिकॉर्डिंग जारी की है उससे स्पष्ट लगता है कि पुलिस वीडियो कैमरे लगाकर और हो सकता है ड्रोन का इस्तेमाल करके जो अपराधी दंगा फसाद और पत्थरबाजी कर रहे हैं उन को चिन्हित कर रही है। इस प्रकार पुलिस चुनौती को अवसर की तरह इस्तेमाल कर रही है।
गृह मंत्री श्री अमित शाह का इस विषय पर सक्षातार यहां देखे:
कश्मीर से अकीब मीर का संदेश सुने: