जोमेटो 11 साल पहले दिल्ली में लॉन्च किया गया था, इसने ‘Foodiebay’ नाम से अपना परिचालन शुरू किया। यह एक नया व्यापार दीपिंदर गोयल ने परिकल्पित किया था। वही इसके आज भी मालिक है। दीपिंदर का ट्विटर से लिया चित्र:
हाल ही में एक व्यक्ति ने भोजन का ऑर्डर इस लिए मना कर दिया क्योंकि लाने वाला मुस्लिम था। बाद में उसने तक दिया कि वह सावन के महीने में मुस्लिम के हाथ का खाना नहीं खा सकता क्योंकि उसने व्रत का भोजन का ऑर्डर किया था।
यहां तक तो को था वह था, उस व्यक्ति ने ट्वीट कर के अपने पक्ष की बात रखी तो जोमाटो ने उसे कहा की – खाने का कोई धर्म नहीं होता। जोमैटो ने उस हिन्दू ग्राहक का आर्डर कैंसिल कर दिया और उसे रिफंड के पैसे भी नहीं दिए।और एक छोटी सी बात से हो हल्ला शुरू हो गया।
जोमाटो 24 देशों में मौजूद है और दुनिया भर में 10,000 से अधिक शहरों में, यह 5000+ का कार्यबल समेटे हुए है। लिखे जाने तक इसके ऐप के 27 लाख से ज्यादा उपभोक्ता गूगल स्टोर पर थे। मुख्य रूप से यह घरों पर भोजन पहुंचाने का काम करता है।
पिछले साल फरवरी में 200 मिलियन डॉलर के फंडिंग राउंड के बाद चीनी ई-कॉमर्स दिग्गज अलीबाबा इस कंपनी में लगभग 26% की मालिक है।
जोमाटो 19 जुलाई 2019 को तुर्की की राजधानी इस्तानबुल में भी शुरू हो गया है।
जोमैटो ने एक हिन्दू ग्राहक को तो कह दिया की खाने का कोई धर्म नहीं होता पर कुछ दिनों पहले इसी जोमैटो से एक मुस्लिम ग्राहक ने कहा था की – मैंने मांस मंगाया, मुझे हलाल मांस ही चाहिए
इसपर जोमैटो ने उस मुस्लिम ग्राहक को ये नहीं कहा की – जनाब खाने का कोई मजहब नहीं होता, जोमैटो ने तुरंत उस मुस्लिम ग्राहक को नतमस्तक किआ और कहा कि हम प्रयासरत है और शीघ्र ही बेहतर सर्विस प्रदान करेंगे।
यह कैसा पाखंड है?
जब ग्राहक हिन्दू हो तब…..
“अन्न का धर्म नही होता”(जोमैटो ट्वीट)..
किँतु ग्राहक मुसुरमान हो तो….
“अन्न का मज़हब” हो जाता हैं.. अन्न हलाल और हराम होता हैं(जोमैटो ट्वीट)
अब यह कथन सोशल मीडिया पर प्रचलित है:
बहुसंख्यक हिन्दुओ की आस्थाओ का कोई सम्मान नही, क्योंकि हिन्दू सहिष्णु हैं। रमजान पर यदि मुसुरमान ग्राहक द्वारा हलाल मीट मांगने पर यदि जोमैटो ने “अन्न का मज़हब नही होता” ट्वीट किया होता तो अब तक इसकी इट से ईंट बज गई होती। कोठा मीडिया के घुँघरू पत्रकार हरी चूड़ियाँ तोड़ रहे थे। अब तक जोमैटो को माफ़ी मांगना पड़ती।
एक मूर्खता पूर्ण जवाब ने सारे मामले को बिगाड़ के रख दिया। जॉमेटो को राजनीति से बचना चाहिए था पर उसके मालिक ने और गहरी छलांग लगा दी। पढ़िए:
https://twitter.com/deepigoyal/status/1156431524058652672?s=20
बाद में जमेटो ने एक पत्र लिख कर हलाला मांस पर अपनी सफाई दी कि यह जामेटो की नहीं वरन् बेचने वालों का प्रमाण है। अब लोग जमाटो को हटाने के लिए छाती ठोक रहे है। इस पर एक ट्विटर ने टिका कर जवाब दिया कि ऐसा करना पाप था। पढ़िए:
https://twitter.com/PplOfIndia/status/1156780225151111168?s=20
उपरोक्त ट्वीट इस पूरे प्रकरण के राजनीतिकरण का स्पष्ट द्योतक है। जोमेटो एक व्यवसायिक उद्योग है। उद्योग वह भी जो खाने पीने से सम्बन्धित है। ऐसे उद्योगों में समाज के सभी वर्गो के लोगो से मिलना होता है। पागलों से भी और अति संवेदनशील लोगों से भी।
अब जोमाटो का ट्विटर चलाने वाला देखें। उसके और ट्वीट देखें। वह तो ऐसे चल रहा है जैसे यह कोई व्यक्तिगत ट्विटर हैंडल हो। यह ग़लत है। एक व्यवसायिक हैंडल को विशुद्ध रूप से व्यवसायिक यानी professional होना चाहिए।
होटल मालिक इस प्रकार की समस्या रोज डील करते है। अगर वह इस तरह ग्राहकों को असम्मान पूर्वक ज्ञान देने लगे तो वहां तो लड़ाई हो जाएगी और अगर ग्राहक नशे में हो तो फिर क्या कहना है।
इस सारे कांड से सिर्फ यह पता लगता है की दीपिंदर गोयल या जो भी ग्राहक सेवा चला रहा है उसे होटल व्यापार में व्यक्तिगत तजुर्बे की सख्त जरूरत है अन्यथा जोमाटो किसी बड़ी परेशानी में पड़ सकती है।
व्यवसायिक लोग समाज सुधार या फलसफा ज्ञान नहीं देते बल्कि चुपके से व्यापार चलाते हैं और राजनीति से बचते हैं। कहते है की पैसा कमाना आसान नहीं है।
क्या जो ग्राहक इस लड़ाई के पीछे है वह किसी व्यवसायिक प्रतियोगी द्वारा प्रतियोजित है?
विदित हो कि जोमेटो के प्रतिद्वंदी स्विगी भी कुछ दिन पहले ऐसे ही हमले कि चपेट में आयी थी क्योकि एक राजनीतिक सिद्धू जो इसको प्रायोजित कर रहे थे वह कुछ अप्रित्तम कथनो के कारण चर्चा में थे।