DRDO ने 12 जून 2019 को टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर वाहन लॉन्च किया।
हाइपरसोनिक का मतलब ध्वनि से भी तेज गति से चलना। भारत की मिसाइल ब्रह्मोस ध्वनि से 2.8 यानी लगभग 3 गुना आवाज से चलती है। यह प्रयोग किसी मिसाइल का प्रयोग नही है। यह एक दूसरे तरह का प्रयोग है। भारत सरकार की विज्ञप्ति कुछ भी नहीं बताती है। विज्ञप्ति पड़े, फिर समझते है।
भारत सरकार की विज्ञप्ति:
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने आज ओडिशा के तट से दूर डॉ अब्दुल कलाम द्वीप से भविष्य के मिशनों के लिए कई महत्वपूर्ण तकनीकों को साबित करने के लिए एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शनकारी वाहन का शुभारंभ किया।
मिसाइल को सफलतापूर्वक 1127 घंटे पर लॉन्च किया ग बहुत बाधाएं है। इसी लिए युद्धक विमानों के अलावा अन्य विमान आज भी 1000 किलोमीटर प्रति घण्टा से ज्यादा रफ्तार पर नही उड़ते है। कॉनकॉर्ड विमान ही अकेला यात्री विमान था पर वह भी बहुत या था। विभिन्न राडार, टेलीमेट्री स्टेशन और इलेक्ट्रो ऑप्टिकल ट्रैकिंग सेंसर ने अपने पाठ्यक्रम के माध्यम से वाहन को ट्रैक किया। डेटा एकत्र किया गया है और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को मान्य करने के लिए विश्लेषण किया जाएगा।
(साभार पोस्ट: 12 जून 2019 5:42 बजे पीआईबी दिल्ली द्वारा)
ध्वनि की गति:
किसी माध्यम में ध्वनि १ सेकेण्ड में जितनी दूरी तय करती है उसे उस माध्यम में ध्वनि का वेग कहते हैं। शुष्क वायु में 20 °C पर ध्वनि का वेग 343.59 मीटर प्रति सेकेण्ड है। वेग = अवृत्ति x तरंगदैर्घ्य ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है। इसके संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है। निर्वात (स्पेस) में ध्वनि का संचरण नहीं होता।
पराध्वनिक विमान (सुपरसॉनिक एयरक्राफ्ट):
पराध्वनिक विमान (सुपरसॉनिक एयरक्राफ्ट) उन विमानों को कहते हैं जो ध्वनि के वेग से भी अधिक वेग से उड़ सकते हैं। ऐसे विमानों का विकास २०वीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ। इनका उपयोग प्रायः अनुसंधान एवं सैनिक उपयोग के लिये हुआ है। लड़ाकू विमान, पराध्वनिक विमान के सबसे सामान्य उदाहरण हैं।
जो विमान ध्वनि के वेग के पाँच गुना से भी अधिक वेग (५ मैक से अधिक) से उड़ते हैं उन्हें प्रायः अतिपराध्वनिक विमान (hypersonic aircraft) कहते हैं।
रॉकेट लंबे समय तक हाइपरसोनिक गति से यात्रा करते रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने ईंधन के साथ-साथ अपनी ऑक्सीजन ले जाने का भी फायदा है। एयर-ब्रीदिंग इंजन के साथ हाइपरसोनिक उड़ान हासिल करना अधिक से अधिक चुनौती है। केवल अमेरिकी, फ्रांसीसी, चीनी और ऑस्ट्रेलियाई लोग 10 सेकंड की हाइपरसोनिक उड़ानों का प्रबंधन कर चुके हैं। डीआरडीओ ने 20 सेकंड की उड़ान का लक्ष्य रखा है। हाइपरसोनिक उड़ान में मैक 5 या 1,500 मीटर / सेकंड की गति से ऊपर की यात्रा शामिल है। हाइपरसोनिक गति से यात्रा करने वाला एक विमान कुछ घंटों में न्यूयॉर्क से टोक्यो पहुंच जाएगा।
हाइपरसोनिक उड़ान सैन्य उद्देश्यों को भी प्राप्त करती है, जैसे कि पारंपरिक रॉकेट की तुलना में बड़े पेलोड ले जाना। चूंकि एक हाइपरसोनिक मिसाइल को ऑक्सीजन ले जाने की आवश्यकता नहीं है, यह परिवेशी वायु में उपलब्ध ऑक्सीजन का स्वतंत्र रूप से उपयोग करता है, जो इसे वजन को बचाने और बड़ा पेलोड ले जाने की अनुमति देता है। इसे बड़ा “पेलोड अंश” कहा जाता है। हाइपरसोनिक उड़ान में मुख्य चुनौती एक ऐसे इंजन को विकसित करना है, जो हवा में सांस लेने के बावजूद 6.5 मैक के वेग से दहन कक्ष को घुमाने में सक्षम हो सकता है। इसलिए इसे “सुपरसोनिक कॉम्बिनेशन रैमजेट” या “स्क्रैमजेट” इंजन कहा जाता है।
स्क्रेमजेट प्रयोग:
हमारे सूत्रों के अनुसार यह भारत का एक स्क्रेमजेट व्हीकल का प्रयोग था। अभी विमान जेट तकनीक पर उड़ते है। जेट तकनीक की बहुत बाधाएं है। इसी लिए युद्धक विमानों के अलावा अन्य विमान आज भी 1000 किलोमीटर प्रति घण्टा से ज्यादा रफ्तार पर नही उड़ते है। कॉनकॉर्ड विमान ही अकेला पराध्वनिक यात्री विमान था पर वह भी बहुत साल पहले बंद कर दिया गया।
उपरोक्त प्रयोग एक नए किस्म के इंजिन जिसे स्क्रैम जेट कहते है का भारत का दूसरा प्रयोग है। पहला प्रयोग कुछ महीने पहले किया गया था। यह कहना मुश्किल है कि प्रयोग सफल रहा। कम से कम उपरोक्त विज्ञप्ति तो ऐसा कुछ नही कहती। पर यह बहुत मुश्किल तकनीक है जिसमे समय लगना स्वाभाविक है।
मजेदारी की बात यह है कि भारत मे जेट इंजिन नही बनता। भारत का जेट इंजन बनाने का प्रोजेक्ट का नाम कावेरी है पर वह अभी सफल नही हुआ है। लगता है भारत सीधे स्क्रेमजेट तकनीक पर काम कर रहा है। यह एक अच्छा फैसला है।