हिंदी भाषा का प्रभाव।

हिंदी है हम:

हिंदी भारत में 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है और इसका इस्तेमाल अंग्रेजी के साथ-साथ सरकार की आधिकारिक भाषा के रूप में भी किया जाता है।

2011 की जनगणना के अनुसार हिंदी बोलने वालों की सबसे अधिक संख्या 52.83 करोड़ है, हालांकि इसमें 21 करोड़ के करीब लोग शामिल हैं जो 55 संबंधित मातृभाषाएं बोलते हैं जैसे भोजपुरी (5 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली) और हरियाणवी (10 करोड़ से अधिक वक्ता) )। वास्तव में, २००१ से २०११ के बीच हिंदी बोलने वालों की संख्या में २५% की वृद्धि भोजपुरी जैसे बोलने वालों (२००१ और २०११ के बीच ५३% बढ़ने वालों की संख्या) के बोलने वालों की वृद्धि से हुई है।

हालाँकि, भौगोलिक रूप से, हिंदी लगभग 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की प्राकृतिक भाषा नहीं है। इसके बावजूद, हिंदी के प्रसार का एक सबसे बड़ा कारण अंतर राज्य प्रवासन रहा है जिसने इसे एक प्रभावी लिंक भाषा बना दिया है।

विश्व मे हिंदी का प्रसार:

हिंदी भाषा ने अपने सभी प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़ दिया है। विगत दो दशकों में जिस तेजी से हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय प्रसार हुआ है और उसके प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है यह उसकी लोकप्रियता को रेखांकित करता है।

शायद ही विश्व में किसी भाषा का हिंदी के तर्ज पर इस तरह फैलाव हुआ हो। इसकी क्या वजहें हैं यह विमर्ष और षोध का विशय है। लेकिन हिंदी को नया मुकाम देने का कार्य कर रही संस्थाएं, सरकारी मशीनरी और छोटे-बड़े समूह उसका श्रेय लेने की कोशिश जरुर कर रही हैं। यह गलत भी नहीं है।

उपभोक्ताओं की गिनती में 1952 में हिंदी विश्व में पांचवे स्थान पर थी। 1980 के दशक में वह चीनी और अंग्रेजी भाषा के बाद तीसरे स्थान पर आ गयी। आज उसकी लोकप्रियता लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है और वह चीनी भाषा के बाद दूसरे स्थान पर आ गयी है। भविष्य भी हिंदी का ही है। कल वह चीनी भाषा को पछाड़ नंबर एक होने का गौरव हासिल कर ले तो आष्चर्य की बात नहीं होगी।

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