जब सैम पित्रोदा ने कहा हुआ तो हुआ तो मुझे बचपन मे पड़ी एक कहानी याद आ गई। बहुत मार्मिक है पर आप भी पढ़िए:
3 अप्रैल को, सन 33 में 1886 साल पहले या शायद उसके आस पास- पवित्र शहर जेरूसलम में एक बहुत ही नाटकीय घटना हुई थी। 2 कोलोसल रोमन साम्राज्य, जिसे तब हम यूरोप और मध्य पूर्व के बड़े हिस्सों पर हावी थे, जेरूसलम के उत्तर में एक क्षेत्र गैलील से एक असामान्य यहूदी उपदेशक को मार डाला गया ।
इस तीस वर्षीय व्यक्ति का नाम येशुआ था, जिसका अर्थ अपनी स्वयं की अरामी भाषा में “उद्धारकर्ता” माना जाता था (हिब्रू रूप येसुआ या येहोशुआ है)। वह एक संकटमोचक रहा होगा, कम से कम अधिकारियों की नज़र में, क्योंकि उसे गिरफ्तार किया गया था, और फिर क्रूर सजा दी गई थी वही सज़ा जो कि रोमन राज्य के दुश्मनों के लिए फैसला करते थे: क्रॉस पर बलि।
वास्तव में क्रूरता की शुरुआत रोमन सैनिकों ने येशुआ के साथ पहले ही शुरू कर दी थी। उसे अपने क्रास को खुद ऊपर ले जाने के लिए आदेश दिया गया था। फिर पीड़ित को उसके हाथों और पैरों से सलीब पर ठोक दिया गया और दर्द से तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया गया। एक बार जब ये सारी तकनीकी खत्म हो गई, तो सैनिकों ने उसके सिर पर एक शिलालेख लगा दिया:
“नासरत के येशु, यहूदियों के राजा।”
कुछ प्रमुख यहूदी जो इस घटना को अंजाम दे रहे थे, ने इस उपाधि पर आपत्ति जताई। शिलालेख पर फैसला करने वाले रोमन गवर्नर से, उन्होंने कहा: “यहूदियों के राजा, ‘लेकिन यह मत लिखो’, लेकिन इस आदमी ने कहा, मैं यहूदियों का राजा हूं।” “गवर्नर, ने उत्तर दिया:
“मैंने जो लिखा है वह लिखा है।”
यह आप समझे कि क्या ज्यादा क्रूर कृत्य था। जिनको न समझ आया हो, उनको बता दूं, यशोवाह ही को आगे चल कर जीसस क्राइस्ट कहा गया था।में जो करता हूँ वह करता हूँ:
कुछ साल पहले भारत के रिज़र्व बैंक के एक गवर्नर थे रघुराम राजन। उन्होंने अपनिनेक जीवनी लिखी है जिसका अंग्रेज़ी में शीर्षक है“आई डू व्हाट आई डु”
हुआ तो हुआ, लिखा तो लिखा, किया तो किया।।
इन सबमे क्या एक बात सम्मिलित है? उसको कहते है हेकड़ी।
जाओ जो करना होबतो कर लो।