महिला मतदाता:
भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों ने हमेशा बड़ी संख्या में मतदान किया है। लेकिन यह 2019 चुनाव में बदल गया है। चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने की बात आने पर महिलाओं ने आखिरकार इस अंतर को उल्टा कर दिया है। 1962 के आम चुनावों में महिलाओं के लिए 16.7% कम मतदान का नुकसान इस साल सिर्फ 0.3% तक कम हो गया। अंतिम संख्याओं के संकलित होने पर यह फर्क पूरी तरह से गायब हो सकता है। जहां मतदान के पहले चार चरणों में पुरुषों का औसत 68.3% था, वहीं महिलाओं का आंकड़ा 68% था।
केरल सबसे आगे:
केरल के साथ 13 राज्यों में मतदाता सूची में महिला मतदाता पुरुषों से आगे हैं। 1.22 करोड़ पुरुष मतदाताओं की तुलना में 1.31 करोड़ महिला मतदाता हैं। यह भी मतदाताओं के उत्साह को दर्शाता है। वास्तव में, प्रत्येक 1,000 पुरुष मतदाताओं के लिए 958 महिला मतदाता का लिंग अनुपात जनसंख्या में परिलक्षित होता है। जबकि जनसंख्या अनुपात जबकि 943 महिला बनाम 1,000 पुरुष है।
अधिक शक्ति:
जबकि महिलाओं को मतदाता के रूप में गिना जाता है और चुनावों को स्विंग करने की शक्ति देखी जाती है तो राजनीतिक सत्ता के गलियारों में उनके प्रभाव में उन्नति बहुत धीमी रही है। 1962 में, 4% से कम उम्मीदवार महिलाएं थीं और पिछले 57 वर्षों में, यह संख्या दोहरे आंकड़े के निशान से नहीं टकराई थी। 2019 में केवल 9% उम्मीदवार महिलाएं हैं। पुरुषों की तुलना में चुनाव जीतने में महिलाओं के बेहतर साबित होने के बावजूद। 2014 में सिर्फ 8.1% उम्मीदवार महिलाएं थीं, लेकिन 11.6% विजेता महिलाएं थीं।
33% आरक्षण:
कुछ ही महिलाएं संसद पहुचती हैं, लेकिन बढ़ती भागीदारी ने उन्हें राजनीतिक दलों और सरकारों की प्राथमिकता सूची में डाल दिया है। चाहे वह उज्जवला गैस किट बांटना हो या मद्य निषेध (बिहार के मामले में) लागू करना हो या ट्रिपल तालाक पर अपना पक्ष रखना हो, सभी महिला मतदाता को साधने की कोशिश है। परन्तु, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने का एक प्रमुख चुनावी वादा पार्टी घोषणापत्र से आगे नहीं बढ़ा है।