मनुष्य जीवन उसके जन्म से आरम्भ होता है और मृत्यु पर समाप्त हुआ प्रतीत होता है।
आदमी जीवन भर भागता है , उपाय करता है, व्यवस्था करता है , सुरक्षा करता है और आखिरी में सारी व्यवस्था, सुरक्षा मौत में जाकर खड़ा कर देती है। सोचता था जो मैं उपाय कर रहा हूँ, उससे मौत से बचूंगा, मिटने से बचूंगा, न होने से बच जाऊँगा। लेकिन वे सारे उपाय, उसके सारे आयोजन उसे ना होने में ही ले जाते हैं। हमने मौत की तरफ कदम उठाये, इसलिए चाहे हम तेज़ घोड़े पर चलते हों, चाहे सुस्त घोड़े पर चलते हों, चाहे गरीब का घोड़ा हो, चाहे अमीर का घोड़ा हो, सभी घोड़े ठीक जगह पर ठीक समय पर, पहुंचा देते हैं। हम शायद जो दिशा लें, व दिशा ही मृत्यु की है। (ओशो, वाराणसी प्रवचन , १९६८ )
आत्मा का फेर:
अंग्रेजी शब्द सोल (soul) का हिंदी में अनुवाद आत्मा गलत है। उसी प्रकार महात्मा ओर हुतात्मा शब्द भी गलत है।
सोल बहुत सारी हो सकती है क्योंकि क्रिस्तान के अनुसार सिर्फ मानव में सोल है जानवरो में नही। जीसस को फॉलो करके इस आत्मा को बचाना ही उनका धर्म है।
सनातन धर्म इससे कतई उलट है।
वेदों का तो पता नही पर भागवत गीता का मेने अनेको बार अध्ययन किया है। इसके अनुसार आत्मा एक है।
समझने के लिए आत्मा को विद्युत की तरह समझे जो सबमे यानी हर प्राणी में है और कण कण में है। इसका संख्या से कुछ लेना देना नही है क्योंकि आत्मा व्यक्तिगत नही है।
सृष्टि को ओर जानने के लिए भागवत गीता का अध्धयन करे पर संस्कृत में जरूर पढे। अनुवाद में उसमे भी कई जगह गलतियां है। हर अनुवादक अपने अनुसार पक्षपाती अनुवाद कर देता है।